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HISTORY

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HISTORY OF THE TEMPLE

आदिश्वरजी तीर्थ का इतिहास पुरातनता में खो गया है| यहाँ पूर्व समय का न तो कोई शिलालेख है, ना ही प्रभु जिन बिंब के नीचे की पाटली है| अतः यह कहा जा सकता है कि जिस प्राचीन काल में प्रभु की प्रतिमा जी भराई गयी, तब पाटली का विधान नहीं था| अगर ऐसा माने तो प्रभु के प्रतिमा जी राजा सम्प्रतिकालीन से पहले के हैं अर्थात 300 वर्ष ईसा पूर्व|

किवदंती के अनुसार, प्रभुजी को मंदिर सहित देव विमान में गुजरात की तरफ ले जाता देख, यहाँ विराजित भव्य महात्मा (शायद श्री प्रेम प्रकाश सूरीजी म.सा.) ने रात्रि के समय अपने योग ध्यान - साधना के प्रभाव से प्रभु को विनती कर, यहाँ देव विमान से उतारा| उस समय काल में राजग‍‌ढ़ के नाम से मशहूर यह नगर, बड़ा संपन्न व्यापार केंद्र हुआ करता था|

मुग़ल बादशाह औरंगजेब ने अपने शासन में इस जिनालय की भव्यता एवं संपन्नता को भारी नुकसान पहुँचाया| इस हृदयविदारक क्षति के प्रमाण हमें आज भी आहत करते हैं| तत्कालीन महात्माओं ने अपनी योग शक्तियों से प्रभु जिन बिंब की रक्षा की|

श्री आदिश्वरजी का अतिशय हमारे ह्रदय में पीढ़ियों से बसा है| यहाँ की पावन पुण्य धरा के जागृत होने की अनुभूति, मन से दर्शन करने वाले हर भाग्यशाली को हो जाती है| प्रभु का अतिशय ऐसा है कि यहाँ कोई भी मद्यपान, मांसाहार आदि व्यसनी कभी प्रभु सेवा या मंदिर में कारीगर कार्य नहीं कर सकता है| ऐसे कई प्रसंग चालु जीर्णोद्धार समय में भी हुए हैं| ऐसा एक उदहारण प्रस्तुत है:

एक बार कोई भाग्यशाली दर्शन वंदन करने के बाद, द्रव्य भंडार में पूर कर चले गए| अपनी चाबी लेने वापिस मंदिर में पधारे, तो उन्होंने कारीगर को भंडार में से रूपए निकालने का प्रयास करते देखा| ट्रस्टीगण को खबर दी और दुसरे दिन जब उस कारीगर को इस बारे में बात करने बुलाया तो वह बुखार में तप रहा था, उसने माफ़ी मांगी और अपने गाँव जाने की आज्ञा ली|

हम ऐसे प्रभु के शासन में निर्भीक हो कर जीर्णोद्धार के कार्य का एक पहरेदार की तरह निष्पादन कर रहे हैं|

EST.

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